Sunday 13 August 2017

राष्ट्रवाद की दीवार के उस पार :


वाद कुछ ऐसी बात है जिसमे हम सिर्फ हमारा ही श्रेष्ठ और दूसरो का हमसे हिन् ऐसा मानते व वर्तते है. ऐसे कितने ही वाद में हम उल्जे हुए है. जैसे की राष्ट्रवाद, प्रदेशवाद, जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद, ईश्वरवाद. ऐसा दरेक वाद संकुचितता है. सबसे बड़ा वाद है राष्ट्रवाद. राष्ट्रवाद कहता है, मेरा देश सबसे महान है, उसको प्रेम करो और उसको समर्पित हो जाओ. प्राथमिक रूप से हमको लगता है की हम सबके हित की बात कर रहे है. पर हम पूरी पृथ्वी के लोगोको नहीं पर सिर्फ हमारे देशकी सीमाके अंदर रहे लोगो को ही ध्यान में ले रहे है. हम दूसरा तर्क ये करते है की हम पूरी दुनिया के लोगो का हित नहीं कर शकते सिर्फ अपने देश के लोगो का ही हित कर शकते है और उनसे जुड़ शकते है. तो वहा तक ही ठीक है. इस तर्कको भी मर्यादा है. हम देशके सवा अबज लोगोमें से कितने लोगोको सही रूपमें मिल शकते है और उनका भला कर शके है ? ज्यादातर हम जिस ग़ाव, नगर व् शहरमें या जिस प्रदेशमें रहते है उसके कुछ लोगोको वास्तविक रूपमें मिल शकते है और उनको अपना बना शकते है, उनका भला कर शकते है. फिर भी हम पूरा भारत देश मेरा है और उसके सभी लोग मेरे भाई बहन ऐसी भावना करते है. अब इस तर्क की दूसरी तरफ देखते है, जब हम हमारे देशके सभी लोगोका भला नहीं कर शकते, मिल नहीं शकते और जान नहीं शकते, तब भी उनको अपना कहते है तो दुनियाके किसी भी देशके व्यक्तिके लिए हम ऐसा कर ही शकते है. किसी भी देशके नागरिकको बिना मिले व् जाने अपना कह शकते है. हमने सरहदे बनाकर उसकी दूसरी और के लोगोंको पराया मान लिया. सिर्फ उतना ही नहीं उनको दुश्मन भी मान लिया. इस पृथ्वी पर सीमाए किसने अंकित की? एक देश दुसरे देश के साथ युद्ध व् संधि करता है तब सीमाए बदलती है. जिते हुए देश की जमीन पर रेखा अंकित करके हम वो धरती अब हमारी है ऐसा मानते है. तो सीधा मतलब ये है की वो सरहदे कुदरतने नहीं पर मानवने ही बनायीं हुयी है.   

में मुजको अच्छा कहू उसके लिए कोई आपत्ति नहीं है पर दुसरे को बिना जाने ही बुरा कहू वह अयोग्य व् मुर्खता है. मेरे देश की सीमा के अन्दरके सभी लोग अछे और दुसरे देशके सभी लोग बुरे और मेरे दुश्मन ऐसा कैसे हो शकता है? आपको अनुभव है की आपके खुदके ही व्यक्तित्वमें अछि और बुरी बाते एक सिक्केकी दो बाजु की तरह रही है. आपके पडोश, ग़ाव, शहर या देशके कुछ लोगोके साथ आपका वैचारिक मतभेद तो है ही पर वो आपको बुरे और दुशमन जैसे भी लगते है, यह सबसे बड़ा उदहारण है की बुरे लोग तो मेरा देश कहे जानेवाले भारतमे भी रहते है. उसके विपरीत आप जिनको खूब सम्मान की नजरोसे देखते हो ऐसे लोग भी है मतलब की अछे लोग भी आपके देश में रहते है. यही हकीकत सरहद के उस पारके देशकी भी है. उसमे भी अच्छे व् बुरे लोग है ही. अछे और बुरे की व्याख्या सापेक्ष और व्यक्तिगत मापदंडो पर होती है इसलिए उसका प्रयोजन सही नहीं है. पर यहाँ सामान्य समज के लिए उसको प्रायोजा है. सीमा के उस पार के लोगो को हम मिलने और जानने से पहले वो लोग मेरे दुश्मन  और ख़राब ऐसा कैसे तय कर शकते है? हमें उस पार के अछे लोगोको मिलना नहीं चाहिए?

जैसा आगे कहा, सरहदे तो मानवने अंकित की हुई है कुदरतने नहीं. उसके तहत ‘सरहदके उस पार’ ये बात ही एक भ्रम मालूम पड़ता है. तब सरहद के उस पार के लोग या दुसरे देश के लोग ऐसा भी कुछ नहीं रहता. जैसे हमारे देशमे कुछ लोग दुसरे दूर के राज्यमे हमसे बहोत दुरी पर रहते है वैसे ही वो दुसरे देश के लोग भौतिक रूप से दुरी पर बसते है. वरना हम सभी इस पृथ्वी पर बसते एक ही पृथ्वीमाता के संतान है. पूरी पृथ्वी हमारे सब के लिए है. कुदरतने हमें भिन्न भिन्न स्थानों में जन्म दिया है. अब हम वहा से कोई भी और स्थान में जा सकते है. जब आप ये देशमे लम्बा प्रवास करते है तब आपको उसका थोड़ा भी अहेसास नहीं होता है की आप एक तहसील से दूसरी तहसील की हद में गए. समज और व्यवस्थापन के लिए ये हदे मानी गयी है और बस उतनी ही उसकी किम्मत है. वरना पूरी पृथ्वी तो एक है. वैसा ही एक देश से दुसरे देशकी सीमा का है, पर यहाँ हमने बहोत स्पष्ट भेद करने के लिए तार की ऊँची बाड बनाकर एक देश को दुसरे देश से अलग किया है. एक देशसे दुसरे देशमें जाने के लिए आपको खास प्रकार की अनुमति लेनी पड़ती है. अब वसुधैव कुटुम्बकम की बात करते है. वसुधैव कुटुम्बकमकी बात या भावना भारत से जन्मी है उसका हम अगर गर्व लेते है तो हमको इस बात को अछे से समज लेना चाहिए. राष्ट्रवाद और वसुधैव कुटुम्बकम इन दोनों बातो के बिच बड़ा विरोधाभास है. अगर पूरा विश्व मेरा परिवार हुआ तो मेरा पडोशी या, मेरे ग़ावका कोई भी व्यक्ति मेरा सगा हुआ. उसी तरह मेरे राज्य या देश तथा कोई भी देशका व्यक्ति भी मेरा सगा हुआ. अगर वो मेरा सगा है तो मेरे भाई बहन के साथ जो व्यवहार में करता हु ऐसा ही व्यवहार मुझे उनके साथ करना पड़ेगा. या उनको में मेरे भाई बहन समजू तो ऐसा व्यवहार कुदरती रूप से ही होगा. तभी ही वसुधैव कुटुम्बकम साकार होगा. अगर हम ऐसा कर शकते है तभी ही हम को उसकी बात करने का हक़ है और तब ही हम उसका गर्व ले शकते है.  अगर कोई भी देशमें मेरे भाई ही रहते हो तो तब सरहदों की जरुरत ही क्यों है? वो हमारे दुश्मन कैसे हो शकते है?
राष्ट्रवादमें मेरा देश ही सर्व श्रेष्ठ है इसा माना जाता है. और काफी लोगोको भी ऐसा ही है की इस पृथ्वी पर भारत ही सबसे महान देश है ( या था ? ) ( काफी भारतीय स्वित्ज़रलेंड, सिंगापोर, दुबइ, मलेसिया, होंगकोंग वगेरह जगह पर घुमने जाते है और अमेरिका, केनेडा, ब्रिटन, ओस्ट्रेलिया व् न्युज़िलेंड जैसे देशो में रूपया कमाने जाने और वो देशका नागरिक बन जाने की जल्दीमे क्यों होते है? भारत से आया वो कोई गर्व की बात नहीं होती पर अमेरिका से आया ये गर्व की बात होती है. ) अब कुदरत के नियम की बात करते है. कुदरत का नियम है अनन्यता. और उसके तहत वो विश्व की हर जगह को अनन्य रखके पुरे विश्व में वैविध्य बनाये रखना चाहता है. तो कुदरती रूप से सबसे अच्छी वस्तुए मात्र भारत में हो ये सम्भव नहीं है. भारत को जितनी सुन्दरता और महानता प्राप्त है वैसे ही हर देश की हर जगह को अनन्य भौगोलिक, वातावरण, कुदरती संपत्ति और महान लोको की भेट कुदरतने दी है. तब सिर्फ एक ही देश को महान कहेना मतलब कुदरतके नियमको गलत साबित करना और ये कभी भी मुमकिन नहीं होगा.  हजारो नयी वैज्ञानिक व् तकनिकी शोध विश्व के दुसरे देशोमें हुयी है, कई प्रकार की खनिज व् अन्य सामग्री हम दुसरे देशोसे आयत करते है और उसका इस्तेमाल हर कोई करता है, वो सारे राष्ट्रवादी लोग भी. और वही योग्य, साहजिक और कुदरत के नियम को सम्मान देनेवाला व्यवहार है.

हर वाद ग़लतफहमी के आलावा कुछ भी नही. ये सब वाद दंभ को बढ़ाते है और बिना कारण की दीवारे खड़ी  करते है.